An answer I get, before I question my privilege.
मैं कुछ नहीं, मैं कुछ नहीं।
मेरे हालात कुछ नहीं, मैं कुछ नहीं।
मेरे जज़्बात कुछ नहीं, मेरे अल्फाज़ कुछ नहीं।
इन जर्जर दीवारों में छुपना और रो देना,
कुछ नहीं।
पुरानी सी रातों में, सिलि हुई चादर में सिमट जाना कुछ नहीं।
मैं कुछ नहीं।
किसी कोने को तलाशना और एक फटी कॉपी में
बचपन बिताना कुछ नहीं।
उस दौर से इस दौर तक का सफ़र तय कर पाना कुछ नहीं।
मैं कुछ नहीं।
इस सोच को लिख पाना कुछ नहीं।
इस हक को हकीक़त बना पाना कुछ नहीं।
खुदा ने रहमत बख्शी है, बस यही।
कुछ इस तरह कर जाना, कुछ नहीं।
मैं कुछ नहीं।